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Chhath Puja 2023 |
• छठ पूजा (Chhath Puja in hindi)या छठ व्रत चार दिवसीय पर्व उत्सव है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है इसकी शुरुआत कार्तिक व चैत्र माह की शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक और चैत्र माह की शुक्ल सप्तमी को होती है। कार्तिक और चैत्र माह में पूरे हर्षोल्लास से मनाया जाने वाला यह एक विश्वविख्यात हिन्दू पर्व है।
• छठ पूजा मुख्य रुप से ॠषियो द्वारा लिखी गई ऋग्वेद मे आर्य परंपरा के अनुसार सूर्य देव, उनकी बहन 'छठी मैया (देवी कात्यायनी)' और प्रकृति, जल तथा वायु की उपासना कर उनसे पृथ्वी पर सामान्य जीवन बहाल करने का अनुरोध कर उनको धन्यवाद करने का अनुपम लोकपर्व है।
• यह पर्व मुख्य रूप से भारत के कई राज्यो जैसे:- बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, कलकत्ता, महाराष्ट्र आदि समेत नेपाल और अब विश्व के अनेको देशो में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। पुत्र की चाहत रखने वाली और पुत्र की कुशलता के लिए, खेतो में अच्छी फसल, परिवार की सुख-समद्धि के लिए सामान्य तौर पर महिलाएँ यह व्रत रखती हैं। पुरुष भी पूरी निष्ठा से अपने मनोवांछित कार्य को सफल होने के लिए व्रत रखते हैं।
1. कार्तिकी छठ पूजा 2023 में कब है? (Chhathi puja 2023 me kab hai) जानिए छठ पूजा सामग्री, नहाय खाय, खरना/लोहड़ा और सूर्य पूजन का शुभ मुहूर्त वैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टिकोण
•छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। छठ पूजा 2023 में 19 नवंबर को है, आइये नवंबर 2023 में मनाए जाने वाले छठ पूजा उत्सव की प्रमुख तिथियों के बारे में जाने:-
1.1.छठ पर्व की प्रमुख तारीखें (Chhath Puja Date): 2022 में
• 17 नवम्बर 2023 , शुक्रवार – नहाय-खाय
• 18 नवम्बर 2023 , शानिवार– खरना/लोहड़ा
• 19 नवम्बर 2023, रविवार – डूबते सूर्य का अर्घ्य
• 20 नवम्बर 2023, सोमवार – उगते सूर्य का अर्घ्य
~ अर्घ्य देने का शुभ मुहूर्त – Chhath Puja Muhurat
• सूर्यास्त का समय (संध्या अर्घ्य): – 19 नवंबर 2023, 05:36 अपराह्न
• सूर्योदय का समय (उषा अर्घ्य) – 20 नवंबर 2023, 06:40 पूर्वाह्न
1.2 छठ पूजा सामग्री की सूची -
1. प्रसाद रखने के लिए बांस की बड़ी टोकरी (दउरा)और सूप।
2. छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद जैसे ठेकुआ, चावल के लड्डू जिसे कचवनियाभी कहा जाता है, महिलाएं संभव हो तो घर पर ही स्वयँ बनाये।
3. छठ पूजा में सबसे महत्वपूर्ण अन्न है, कुसही-केराव के दानें (हल्का हरा काला रंग के मटर से थोड़ा छोटा दाना) हैं। इसे उषा अर्घ्य में अर्पित किया जाता है।
4. कार्तिक अथवा चैत्र मास में खेतों में उपजे सभी मसाले व अन्नादि, ये सभी साबूत (बिना कटे टूटे) ही अर्पित किए जाते है।
5. हल्दी और अदरक का पौधा हरा हो तो अच्छा। साबूत गन्ना पत्तो सहित, ओल, सुथनी और शकरकंदी।
6. केला, सिंघाड़ा, नासपाती, मीठा नींबू जिसे टाब भी कहते है, नारियल।
7. नए वस्त्र साड़ी (स्त्री), कुर्ता पजामा (पुरुष)।
8. नए दीपक, नई बत्तियाँ व घी, घाट पर दीपक जलाने के लिए, धूप, अगरबत्तियां।
9. चावल, लाल सिंदूर, शहद की डिब्बी, पान और साबुत सुपारी, कपूर, कुमकुम, चंदन।
10. लोटा, थाली, कटोरी, चम्मच, गिलाश।
1.3. छठ पर्व की शुरुआत 'नहाय-खाय' से
• इस वर्ष कार्तिक शुक्ल चतुर्थी यानी 17 नवम्बर 2023, शुक्रवार, को नहाय-खाय है। इस दिन व्रती को सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र करने के बाद अपने नजदीक में स्थित गंगा नदी, या सहायक नदी या फिर तालाब में जाकर स्नान करना होता है।
• व्रती को इस दिन सिर्फ एक बार ही खाना खाने का नियम है। भोजन में व्रती कद्दू, लोकी की सब्जी ,चना, मूंग दाल, चावल का उपयोग करते है. तली हुई पूरियाँ और सब्जियो समेत लहसुन, प्याज आदि वर्जित हैं. यह खाना मिटटी या कांसे के बर्तन में, मिट्टी के चूल्हे पर और पकाने के लिए ईंधन के रूप में आम की लकड़ी का प्रयोग किया जाना चाहिए। खाना बनने के बाद पहले व्रती खाना खाते है उसके बाद ही परिवार के अन्य सभी सदस्यों के खाना खाने की परंपरा है।
1.4 छठ पर्व का दूसरा दिन 'खरना या लोहंडा'
• इस वर्ष 18 नवंबर 2023, शनिवार को कार्तिक शुक्ल पंचमी यानी छठ पर्व का दूसरा दिन है जिसे खरना या लोहड़ा के नाम से जाना जाता है।
• इस दिन व्रती सूर्यास्त तक निराहार और निर्जल रहते है। शाम को गन्ने का रस, गुड़, और चावल का प्रयोग कर खीर बनाई जाती है, (भोजन में नमक और चीनी का प्रयोग वर्जित है) और सूर्यदेव को नैवेद्य देकर एकांत में उसे ग्रहण करते है। व्रती को एकांत में खाते समय किसी भी प्रकार का शोर या आवाज सुनाई देना छठ व्रत के नियमो के विरुद्ध है, इसलिए परिवार के सभी सदस्य उस समय घर से बाहर चले जाएं या मौन रहे।
• व्रती स्वयं खाकर अपने परिवार जनों और रिश्तेदारों-मित्रों को वही 'खीर-रोटी' का प्रसाद खिलाते है। घी लगी रोटी और चावल का पिट्ठा भी प्रसाद के रूप में वितरण किया जाता है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को ही 'खरना/लोहड़ा' कहा जाता है। इसके बाद व्रती द्वारा अगले 36 घंटो के लिए निर्जला व्रत रखा जाता है।
1.5 छठ पर्व का तीसरा और विशेष दिन 'संध्या अर्घ्य'
• इस वर्ष छठ पूजा का तीसरा दिन यानी कार्तिक शुक्ल षष्ठी 19 नवंबर 2023, रविवार को है, जिसे संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है।
• इस दिन प्रातःकालीन समय से ही सभी लोग मिलजुल कर पूजा की तैयारियां करते है। छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद जैसे ठेकुआ, कचवनिया (चावल के लड्डू) आदि बनाये जाते है।
• बाँस से बनी टोकरी (दउरा) और सूप जो के छठ पूजा के लिए विशेष रूप से बनाई जाती है में सभी प्रकार की पूजन सामग्री रख कर घर के पुरूष अपने सिर पर रख कर छठ घाट पर लाते है और महिलाएं पूरे रास्ते छठ पूजा के सुंदर और मधुर गीत गाते हुए छठ घाट तक आती है।
• घर के किसी सदस्य द्वारा नदी या तालाब के किनारे बनाये गए चबूतरे पर जाकर व्रती महिलाये बैठती है। नदी से मिटटी निकाल कर छठ माता का चौरा बनाया जाता है उस पर पूजा का सारा सामान रखकर नारियल चढ़ाते है और दीप जलाते है। सूर्य देव की पूजा का सारा सामान लेकर सूर्यास्त से कुछ समय पहले घुटने भर पानी में जाकर खड़े हो जात है और डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा करते हुए सर्वमंगल की कामना करते है।
• बहुत से लोग घाट पर ही रात बिताते हैं वही कुछ लोग छठ के गीत गाते हुए घर पर सारा सामान लेकर आ जाते है और उसे घर के पूजा स्थल में रख देते है।
छठ पूजा वीडियो | Chhath Puja Video
1.6 छठ पर्व का चौथा और अन्तिम दिन 'उषा अर्घ्य'
• इस वर्ष 20 नवंबर 2023, सोमवार के दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। जिसे उषा अर्घ्य के नाम से जाना जाता है।
• इस दिन व्रती लोग अपने परिजनों के साथ सूर्योदय से काफी समय पहले ही सूर्यदेव की उपासना हेतु घाट पर पहुंच जाते है। इसमें सभी नियम और विधान संध्या अर्घ्य की तरह ही रहेंगे। संध्या अर्घ्य में अर्पित पकवानों की जगह नए पकवान रखे जाते है लेकिन कंद, मूल और फलादि सामग्री वही रहती है।
• व्रती लोग पूरब दिशा की और मुँह करके पानी मे खड़े होते है व सर्वमंगल की कामना करते हुए मंत्रो सहित सूर्योपासना करते है। इसके पश्चात व्रती घाट का पूजन करते है, और वहाँ उपस्थित लोगों में प्रसाद का वितरण कर घर आकर आसपास के किसी पीपल के पेड़ जिन्हें ब्रह्म बाबा भी कहते है उनकी पूजा करने के पश्चात व्रती अपने व्रत का पारण/परना करते है और नमकयुक्त भोजन कर सकते है
1.7. पारण या परना किसे कहते है?
• छठ व्रत में विधिपूर्वक सभी पूजाओं को करने के बाद व्रती थोड़ा प्रसाद खाकर और कच्चे दूध का शरबत पीकर अपना व्रत पूर्ण करते है जिसे पारण या परना कहते है।
2. छठ पूजा वर्ष में कितनी बार, नामकरण, व्रती नियम और यह व्रत कौन और कब तक रख सकता है?
• छठ पूजा साल में दो बार होती है एक चैत मास में और दुसरा कार्तिक मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि, पंचमी तिथि, षष्ठी तिथि और सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है।
• कार्तिक और चैत्र शुक्ल पक्ष के षष्ठी को यह व्रत मनाये जाने के कारण इसका नामकरण छठ व्रत पड़ा।
• छठ पूजा में व्रती को लगातार 36 घंटे का व्रत रखना होता है, इस दौरान वे पानी की 1 बूंद भी नही ग्रहण कर सकते। व्रती को व्रत काल में शरीर तथा आसपास साफ-सफाई का विशेष रखना चाहिए, हाथ के नाखून वगेरा सब काट लें।
• भोजन के साथ ही व्रती को आरामदायक बिस्तर का भी त्याग करना अनिवार्य है। पर्व के लिए बनाये गये कमरे में व्रति को फर्श पर एक कम्बल या चादर के सहारे ही रात बितानी चाहिए। इस उत्सव में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं को नये कपड़े पहनते चाहिए। महिलाएँ साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करे।
• छठ पूजा और व्रत की मुख्य उपासक आमतौर पर महिलाएं होती हैं, लेकिन छठ महापर्व के लिंग-विशिष्ट त्यौहार न होने के कारण पुरुष, बूढ़े और जवान सभी लोग इस उत्सव का पालन करते है।
• छठ व्रत को शुरू करने के बाद सालों साल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की कोई विवाहित महिला इस व्रत के लिए तैयार न हो जाए।
😢 घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है।
3. छठ माता या छठी मैया कौन है? और इनका मंत्र बताए
• पौराणिक कथाओं के मुताबिक छठी मैया को ब्रह्मा जी की मानसपुत्री और सूर्य देवता की बहन माना गया है. छठी मैया निसंतानों को संतान प्रदान करती हैं. इसके अलावा संतानों की लंबी आयु के लिए महिलाएं यह पूजा करती हैं.
• दरअसल छठ माता, 'माँ कात्यायनी' का ही शक्ति रूप हैं और माँ कात्यायनी, दुर्गा का छठा अवतार हैं। शास्त्रों के अनुसार देवी के कात्यायन ऋषि के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ गया। षष्ठी तिथि के अलावा नवरात्र के छठे दिन तथा बच्चे के जन्म उपरांत उसकी छठी के दिन माँ कात्यायनी देवी की ही पूरे श्रद्धा भाव से पूजा की जाती है।
~ जानिए छठ माता (षष्ठी देवी) कात्यायनी का सरल और प्रभावशाली मंत्र
• ॐ चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना
कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि
4. छठ पूजा में सूर्य पूजा का महत्व और मंत्र
• देवता के रूप में:- छठ पर्व मूलतः सूर्य की आराधना का पर्व है। सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ इन दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्ध्य देकर दोनों का नमन किया जाता है।
~ अर्ध्य देते समय निम्न सूर्य अर्ध्य मंत्र का जाप करें
ऊँ ऐही सूर्यदेव सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकर:।।
ऊँ सूर्याय नम:, ऊँ आदित्याय नम:, ऊँ नमो भास्कराय नम:। अर्ध्य समर्पयामि।।
5. छठ पर्व का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
• छठ पूजा का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष इसकी पवित्रता सादगी और लोकपक्ष है। आध्यात्म और भक्ति भावना से परिपूर्ण इस पर्व में मिट्टी से बने बर्त्तनों, बाँस से निर्मित सूप, टोकरी, गन्ने का रस, गुड़, चावल और गेहूँ से निर्मित प्रसाद का प्रयोग किया जाता है। मधुर और सुरीले लोकगीतों से युक्त यह पर्व लोक जीवन में भरपूर मिठास का प्रसार करता है। इस व्रत के लिए न विशेष धन की आवश्यकता होती है और ना ही किसी पुजारी या गुरु की।
• छठ पर्व में गरीब और सामान्य जनता अपने दैनिक जीवन की मुश्किलों को भुलाकर सेवा-भाव और भक्ति-भाव से सामूहिक कर्म का विराट और भव्य प्रदर्शन करते है
6. छठ पर्व/पूजा/व्रत का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
• वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है, इस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें (Ultra Violet Rays) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह घटना चैत्र मास तथा कार्तिक की अमावस्या के छ: दिन उपरान्त आती है। ज्योतिषीय गणना पर आधारित होने के कारण इसका नाम और कुछ नहीं, बल्कि छठ पर्व ही रखा गया है। छठ पर्व के विधिपूर्वक पालन से सूर्य के प्रकाश (पराबैंगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा सम्भव है। पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिलता है।
• सूर्य की किरणों में कई गम्भीर रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाए जाने के कारण प्राचीन काल से ही सूर्य को आरोग्य देवता माना जाने लगा था। सिद्ध ऋषि-मुनियों ने अपने अनुसन्धान और शोधों के क्रम में किसी खास दिन इसका प्रभाव विशेष पाया। भगवान कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था। उन्हें इस रोग से मुक्ति दिलाने के लिए शाक्य द्वीप से ब्राह्मण बुला कर इस दिन विशेष सूर्योपासना की गयी। सम्भवत: यही छठ पर्व के उदगम की पवित्र बेला रही हो।
7. छठ पर्व शुभकामना
आपकी आँखों में सजे है जो भी सपने
और दिल में छुपी है जो भी अभिलाषाएँ छठी मैया आशीर्वाद से सभी सच हो जाएँ,
आपके लिए यही है मेरी शुभकामनाएं।